मुलाकात....

" फातिमा चची आज भी उसी तेवर में रहती है. मुस्तफा चचा चाय पीते, खाना खाते समय बिलकुल भी बहस नहीं करते. बड़ी मां के साथ इस बार हम ईद की खुशियाँ नहीं मना पाएंगे. दो साल पहले ही वो हम सब को अलविदा कह गई है. जुबेदा फुफ्फी आजकल यहाँ नहीं रहती. शब्बो मुमानी की लड़की मुमताज़ का चेहरा देखे सालों-साल गुज़र गए . ईद में पहले हम ईदी लिया करते थे, अब देने के दिन आ गए हैं." बचपन के एक मित्र से आज बाज़ार में संयोगवश बरसों बाद मुलाकात हो गई. वह बच्चों के लिए ईद पर कपडे खरीदने आया था. बरबस उसकी जुबां से उपरोक्त सारी बातें एक-एक कर निकलने लगी थी. हम ज़ब बाहर खेलते रहते थे, और रशोईघर से चाची " अरे लत्तू ' लतीफ़ ' कहाँ गया रे माटीमिला " चिल्लाती थी तो आवाज़ सड़क तक पहुचती थी . आज ढेर सारी पुरानी यादें ताज़ी हो गई. ईद की मुबारकबाद के ठीक बाद हम दोनों फिर से जुदा हो गए.

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