सब कुछ भुला दिया रे..

फेसबुक-फेसबुक खेलते-खेलते रात कब दो बाज़ गए, पता ही नहीं चला. घडी में नज़र गई तो मै सीधे बिस्तर पर चला गया. रात ज्यादा होने से ज़ल्दी आँख भी लग गई. एक बहुत ही अच्छा गाना " कभी बंधन छुड़ा लिया...,कभी दामन छुड़ा लिया...ओं मितवा रे...ऐ...ऐ..ऐ." के बोल की तेज़ आवाज़ ने सुबह ज़ल्दी उठनें मजबूर कर दिया. मैने खिड़की खोल, नज़रें दौड़ाई . नगर-निगम का एक सफाई कर्मी झाड़ू बंधे बांसड़ा लिए गली साफ़ कर रहा था. खर्र र्र.. र्र..र्र.., खर्र र्र.. र्र..र्र..की ध्वनि के बीच कानफोडू आवाज़ वाला मोबाईल अपनी जेब में रखा था. गाने के बोल में मधुरता ज़रूर थी किन्तु आवाज़ की क्वालिटी माशाल्लाह !.....(आप समझ सकते है) ज़ब मोबाईल का चलन नहीं था तो साफ-सफाई करने वाले कर्मी एक ओर लम्बा चमड़े का पट्टा ( बिना संकल वाला )लटकाए रखते थे. चमड़े का ही कव्हर जिसमें बड़ा ट्रांजिस्टर हुआ करता था. फ़िल्मी गानों की धुन उन्हें खर्र र्र.. र्र..र्र.., खर्र र्र.. र्र..र्र. करने उत्साहित करती थी. ऐसा दृश्य देख लगने लगता था कि गाना सुनते हुए काम का अपना अलग मज़ा है. अब ट्रांजिस्टर विलुप्त हो गया है. ढेरों अन्य सुविधाओं सहित पूरी दुनिया माचिस कि डिब्बी ( मोबाईल) में समाई हुई है. यही सोचते हुए मै अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गया.

Comments

Popular posts from this blog

यहाँ भी " चूहे-बिल्ली " का खेल ...?

" तोर गइया हरही हे दाऊ....!!! "

" पालक का पेट भरती चिडिया "