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Showing posts from September, 2012

अब नहीं पीटेगा वह !

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" मेरी क्या गलती है ...मुझे क्यों मार रहे हो...आप जैसा बोलते हैं , वैसा ही तो करते आ रही हूँ....मत मारो...मुझे मत मारो..." इन्हीं चीखों के साथ एक घर के अन्दर से महिला के जोर-जोर से रोने की आवाज़ आ रही थी. बाहर लोगों की भीड़ जुटी थी. हर आने-जाने वालों का वहां रुकना हो रहा था. दरअसल माज़रा ही कुछ ऐसा था कि न चाहते हुए भी लोगों के कदम थमने लगे थे. उनके कुछ पड़ोसी काफी कुछ समझाने का प्रयास कर रहे थे पर पतिदेव मानने तैयार नहीं थे. अपनी पत्नी को बस पीटे जा रहे थे. पड़ोसियों ने जब उससे पीटने का कारण पूछा तो चौकाने वाला जवाब आया. वो कह रहा था-" सोंचा था,  अब की बार लड़का पैदा होगा लेकिन दूसरी बार भी इस करमजली ने लड़की ही पैदा की  है. लड़का होने की प्रत्याशा में मैंने क्या-क्या नहीं सोंच रखा था. जश्न के लिए काफी कुछ तैयारियां  भी कर ली थी किन्तु इसने फिर लड़की पैदा कर सब कबाड़ा कर दिया है. अब इसे पीटूं नहीं तो क्या इसकी आरती उतारूँ. "  वह किसी की बात सुनाने तैयार नहीं था. इस बीच वहां से एक एम्बुलेंस गुजर रही थी. भीड़ देख  ड्रायवर को इशारा हुआ और एम्बुलेंस भी वहां रुक गई. माज़

कैसा सिस्टम और कैसा सम्मान..?

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बाहर से देखने पर तो एक बड़ा दफ्तर लग रहा था. बाहर दफ्तर के नाम का जो बोर्ड लगा था उसमे के कुछ शब्द मिट से गए थे पर 'विकासखंड' लिखा स्पष्ट नज़र आ रहा था. वहां लोग आ रहे और जाने वाले जा रहे थे. आने और जाने वाले सब के सब चेहरे से शिक्षक लग रहे थे. सामने की टेबल में साहब बैठे थे तो अन्दर हिसाब व लेखा वाला बाबू बैठा था. एक शिक्षक जो सेवानिर्वृत्ति की कगार पे थे, का वहा प्रवेश हुआ. हिसाब बाबू से वे कहने लगे-" क्या बात है, मेरा एरियर्स क्यों नहीं दे रहे हो..... पार्ट फ़ाइनल का आवेदन भी लटका है....रीयेम्बर्स का कोई हिसाब ही नहीं है. ........अग्रिम की अर्जी भी लटकी हुई है." हिसाब बाबू कहने लगा- " ज्यादा चिल्लाओ मत, हमें भी नीचे से ऊपर तक बांटना पड़ता है, तुम्हे क्या , आ गए चिल्लाने....खड़कू बोला था, उसका क्या...? पहले खड़कू फिर बात आगे बढ़ेगी. जमता है तो देखा लो." बेचारा राष्ट्र निर्माता कहलाने वाला शिक्षक अपना सा मुंह लिए उस दफ्तर से बेआबरू यह कहते निकल गया कि आज शिक्षक दिवस है और जिला स्तरीय समारोह में जिन शिक्षकों का सम्मान होना है, उनमे एक नाम उनका खुद का है