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Showing posts from June, 2014

" आये बदरा कारे-कारे...!!! "

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चिलचिलाती धूप थी, लू का कहर था, तेज अँधड के बाद जब मिट्टी की सौंधी खुशबू आने लगी तो पतछड में खोया बरगद प्रफुल्लित होकर आहें भरने लगा । लू के थपेडे खाकर अधमरी हो चुकी गौरइया अब सांस लेने लगी है। अब वह धूल स्नान करना छोड़ " छपक-छइया " करने में जुट गईं हैं । चीं...चीं...चीं... की आवाज फिर गूंज उठी और उसकी आँखों में हरियाली सी छा गई । अरे, बादल जो सज-संवरकर आया है और मानो कह रहा हो-" बडे अच्छे लगते हैं ... ये धरती...ये नदिया...और तुमsssss...!!! " संस्कारधानी नगरी राजनांदगाँव के मोहारा जल शोधन व संवर्धन गृह से लगाकर बहती अगाध शीतलता बिखेरने वाली शिवनाथ नदी आसमान मे छाये बादल के ठाठ-बाट को देख ऐसे लजाने लगी थी जैसे कोई नवयौवना अपने प्रियतम के सामने घूंघट सरकाते शरमाती है। लरजकर ही सही पर जैसे कह रही हो-"आये बदरा...कारे-कारे...!!!" दुल्हा सरीखे बन-ठन के पहुंचे बादल के आगे-आगे नाचती-गाती सी बयार ऐसे चलती रही जैसे किसी मधुर धुन में संगत कर रही हो। झुके पेड़-पौधे अब अपनी गर्दन उचका-उचकाकर धूल से कहने लगी थीं कि " चल भाग री करमजली, अब तेरा कौन है यहाँ...!!

" हाय रे गर्मी .... हाय रे बिजली....!!!"

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मेरे हाथ में चाय का प्याला था ! चाय की चुस्कियां लेते अखबार पढने की आदत जो बन गई है! सूरज ने अपनी किरणों का उग्र रूप दिखाना शुरू कर दिया था! परिंदों के चहकने की आवाज़ आने लगी थी! गज़ट पूरा पढ़ भी नहीं पाया था कि बिजली चली गई! बिना पूर्व सूचना के बिजली वालों ने विद्युत प्रवाह बाधित कर आज दिन भर परेशान किया.! सूरज जागकर फिर सोने की तैयारी में थ ा, दरअसल हवाओं के साथ उन्हें पैगाम जो आया था कि अब तुम छुप जाओ... चाँद उतरने वाला है.... सितारे विचरण करने वाले हैं ! परिंदे अपने ठीयों को जाने उद्यत थे! मेरे मोहल्ले की दोपहरी आँखों-आँखों में ही गुज़र गई! दिगर मोहल्ले के लोग नींद भांजकर जाग चुके थे पर बिजली वाले नहीं जग पाये! देरशाम रहत मिली! वज़ह चाहे जो भी हो पर अब सुनने मिल रहा है की बिजली के आम उपभोक्ताओं को बिजली दर में पंद्रह फीसदी करंट लगाने की पूरी तैयारी है! हाय गर्मी .... हाय बिजली....!!!"