" उडान " पर बंदिश..!!!

" रुखमणि " आज बेहद खुश थी। जब वह पीहर छोड पिया के संग आई थी तो खूब लजाती थी पर अब बात दूसरी है। आज उसके चेहरे में आत्मविश्वास की झलक स्पष्ट दिख रही थी। दरअसल उसका पति " प्रेमलाल " क्षर-फुक्कन किस्म का है। जेब में रुपए हैं तो वह किसी शहंशाह से कम नहीं। आंखें तरेरती हुई आज " रुखमणि " ने पगार के सारे पैसे अपने कब्जे में कर लिए थे। कमर तक लंबे बालों को झटकती हुई कहने लगी- " घर मुझे चलाना पडता है। सब्जी-भाजी से लेकर अन्य जरुरतें आखिर कैसे पूरी होगी ? फिर तो सरकार ने भी अब महिलाओं को घर का मुखिया बना दिया है। देखे नहीं क्या, राशन कार्ड मे बतौर मुखिया मेरा नाम और मेरी फोटो लग गई है।"
अमर, विष्णु, रामगोपाल, सरजू और मनबोधी भी गुलछर्रे उडाने में कोई कमी नहीं करते। रुखमणि की टेक्निक आबा चम्पा, कमला, गुलाबो, प्रेमबती और अनसुईया भी अपनानें लगी हैं। इन पतियों पर तो मानो शामत ही आ गई ! " चोंगी-माखुर " के चंद खर्चे थमा कर इन पत्नियों ने अपने पतियों के " छकल-बकल " की प्रवृति पर बंदिश लगाने की ठान ली है। लोगबाग के तानों की चिंता छोड हर शाम ये महिलाएं बा-कायदा बैठकें कर सुख-दुख बांटती हैं और समूह की रचनात्मक गतिविधियों को शनैः शनैः गति प्रदान करती हैं । जय हो*****!!!!!

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