घोघा और तिनके का स्पर्श ...!!!


मैने घोंघे को इतने करीब से पहले कभी और नहीं देखा था। आज शिवनाथ तट में रु-ब-रु हुआ। वह अपना घर अपने साथ लेकर चल रहा था। शाम के समय वह तट पर जल से निकल कर थल की ओर आने की कोशिश कर रहा था। इसके सिर का भाग काफी संकुचनशील लग रहा था। इसे देख मुझे मस्ती सूझी और मैने एक तिनका लिया। सिर के मांसल भाग में तिनके का स्पर्श होते ही उसने अपने आप को अपनी कवचनुमा कोठरी में सिकोड लिया। कुछ देर बाद अंदर का जीव फिर झांकने लगा था। वह रेंग-रेंग कर फिर निकलता और तिनके के स्पर्श से फिर अपने आप को सिकोडते जा रहा था। मुझे मजा आ रहा था और इसी मजे के फेर में मेरे हाथ के तिनके का कमाल जारी था। इसके सिर मे मुंह और दो आंखें थी। बार-बार तिनके के स्पर्श से घोंघा शायद परेशान हो गया था अतः अब वह झांकते ही स्वयं को सुरक्षित करते हुए अपने आप को कवच में सिकोडने लगा था। अब की बार बहुत देर तक वह कवच से झांका भी नहीं और मेरे हाथ का तिनका स्पर्श को फडफडाता रहा! मैने भी सोंचा " शायद, घोंघा ग्रीष्म निद्रा लीन हो गया हो ! " मैने भी वहां से रवानगी डाली।

Comments

Popular posts from this blog

यहाँ भी " चूहे-बिल्ली " का खेल ...?

" तोर गइया हरही हे दाऊ....!!! "

" पालक का पेट भरती चिडिया "