" जब गीली जेब से निकली रुदनी ....!!! "

पानी गिरा …, बाढ़ आई …, चार यार जुटे...., मस्ती के मूड में उछलते-कूदते नहाने के साथ ही बाढ़ का मज़ा ले रहे थे! बाढ़ में बह कर आई  मछलियां, नहाने वालों के नंगे शरीर से टकराकर शरमाती हुई भागने लगी! सभी ने नहाते-नहाते मछलियां पकड़ने की युक्ति लगाई! एक पारदर्शी कपड़े के सहारे अब ये सभी मछलियां पकड़ने में व्यस्त हो गए! देखते ही देखते इनके पास कोतरी...., बिजलू …,टेंगना …,सारंगी …, सहित एक-दो छोटी मोंगरी जैसी मछलियां संग्रहित हो गई! इस बीच कुछ और उत्साहित लोगों की भीड़ वहां बढ़ गई! पकड़ी गईं मछलियों को अब बांटने की बारी आई! यद्यपि सब के सब प्रसन्न मुद्रा में दिखाई दे रहे थे पर मछलियां पकड़ते-पकड़ते इनमे से एक की गतिविधियां शेष लोगों को संदेहास्पद लगाने लगी थी! सवालात भरी नज़रों से उसे ऐसा देख रहे थे जैसे सभी का मौन आग्रह शंका समाधान चाहता हो,  तत्काल तलाशी ली गई तो चड्डे की गीली जेब से रुदनी नामक मछलियां निकलने के साथ ही मछलियां छुपा रखने की पोल भी खुल गई, हा.... हा.... हा...., फिर क्या था, मछलियां गवांने  साथ ही उसे बंटवारे से भी बेदखल होना पड़ गया! 

Comments

  1. मन ही तो है, मचल गया - बेचारा !

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    1. " प्रतिभा जी, शुक्रिया आपका ! "

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