यहाँ भी " चूहे-बिल्ली " का खेल ...?
शनिवार 7 जनवरी को मुझे भी सिटी हास्पिटल जाना पढ़ गया. शाम का समय था. शाम इसलिए कि डाक्टर साहब राजनंदगांव के मरीजों को शाम-रात को ही देखते है. वहां काउंटर में दो से तीन कर्मी बैठे थे. गाने वाला एक चेनल टीवी पर चल रहा था. डाक्टर के आगमन के इंतजार में और भी ढेरों लोग बैठे थे. एक मोटा आदमी वहां रखी क्वाइन बॉक्स वाली मशीन में सिक्के डाल-डाल कर अपना वज़न आजमा रहा था. एक ही व्यक्ति का तकरीबन कुछ समयांतराल में अलग-अलग वज़न का टोकन निकलने से वह परेशान सा हो गया था. पहली बार 95 किलो...दूसरी बार के प्रयास में तीन किलो वज़न घट गया. तीसरी बार तो हद ही हो गई. एक किलो और घट गया. इस तरह से तीन सिक्के हज़म करने के बाद उस मशीन ने घटतेक्रम में वज़न बताया. जब उस मोटे आदमी ने वहां बैठे और लोगों को मशीन से क्रमवार निकले वज़न के आंकड़ों का परिणाम बताया तो सब खिलखिलाकर हंस पड़े. वज़न घटाने हजारों रुपये माह में फूंक देने वालों की खुशफहमी के लिए शायद ऐसी मशीन कारगर हो सकती है. इस ठहाकेदार वाकिये के बाद सब डाक्टर के आने की राह देख ही रहे थे कि वेटिंग हाल में कहीं से फुदकता हुआ एक छोटा चूहा आया. बिल्ली की " गि
" जी, आपका शुक्रिया..!!! "
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