चूभती हंसी....!

" बातों से लग तो पूरा संपादक रहे हो लेकिन संपादकों सी मक्कारी कहाँ से लाओगे. हाँ....हाँ..( राजेश शर्मा ) बिल्कुल यही नाम था उस मक्कार का. विज्ञापनों में कहीं कोई कमी नहीं की. जगह-जगह उसने स्कूल खोला. लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने शक्तिमान (मुकेश खन्ना ) और बालीवुड कलाकार ( गुफी पेंटल ) को खुली जीप में गली- गली घुमाया. एक लाख एकमुश्त लेकर मेरे बच्चे की बारहवीं तक शिक्षा की गारंटी दी थी. मेरे जैसे न जाने और कितने छत्तीसगढ़ियों से अरबों वसूला. एक दैनिक अखबार (नेशनल लुक ) भी निकला जो हमारे एक पूर्व संसद की तरह बड़ी तेजी से उभरा था. समाचार लिखने वाले नौकरों ( साँरी  रिपोर्टरों  ) को दोगुनी-तिगुनी मजदूरी में बड़े अखबार ग्रुप से तोड़कर लगाया. बाद में ये ' घर के रहे न घाट के ' वाली स्थिति में आ गए. ' डाल्फिन ' को तो उसने बिना पानी के सागर में तैरने छोड़ दिया और पूरी झांकी के साथ ' नॅशनल लुक ' निकालने वाला अब लुका-छिपी का खेल, खेल रहा है."  एक साँस में वह न जाने और क्या-क्या बके जा रहा था. शायद मैंने यह कहकर उसकी दुखती रग को छेड़ दिया था कि मै भी अब अखबार निकालुंगा और नाम होगा " गोबर टाइम्स." एक पुराने मित्र टिलेश्वर (हम आज भी उसे टिल्लू बुलाते हैं ) से आज स्टेशन में अचानक मुलाकात हो गई. वो मंत्रालय में अपनी ड्यूटी बजाता है. बच्चों की छुट्टी चल रही है. इन दिनों फेमिली के पास रहने उसे अप-डाउन करना पड़ रहा है. उसने सवाल किया- " ये अचानक अखबार निकलने का कैसे सोंच लिया? मैंने कहा-  " ताकि मै देश के लोकतंत्र की ईमारत को मजबूत,चिरस्थाई, ईमानदार और पारदर्शी बनाने में अपना योगदान दे सकूँ. 'गोबर टाइम्स' के माध्यम से सच को सच कहने का प्रयास करूँगा. लोगों की आवाज बनूँगा. समाज को नई दिशा देने की कोशिश होगी." इतना कहते देर न लगी कि टिल्लू की उपहासजनक हंसी से स्टेशन परिसर गूंजने लगा. सुई की भांति चूभन वाली हंसी का अहसास कर मुझे लगा की शायद मेरे सहनाम वाले की करनी का खामियाजा मुझे भुगतना पड़ रहा है. हम वहां से निकल पाते, इसके पहले एक लाठी टेकती बुढिया " सीढ़ी पार करवा दे बेटा " कहते पहुंची. हम दोनों ने मिलकर माताराम को हांथों का क्षणिक सहारा दिया. उनका धन्यवाद् बटोरकर हम दोनों भी अपने-अपने रस्ते हो लिए.     

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