" घुग्घी मां की जय हो.."
एक गाँव..., गाँव की सकरी गली...,गली में करीब चार कमरों का कवेलूदार मकान. बीच का बड़ा कमरा सजा हुआ था. देवी-देवताओं की तस्वीर के साथ ही नीबू- नारियल का एक तरह से भंडार था वह कमरा. पूजा स्थल से लगाकर एक ऊँची गद्दी लगी थी. उस गद्दी पर बड़ी-बड़ी आखों वाली एक ऐसी महिला बैठी थी जिसके बाल ऐंठनदार थे. भरा हुआ शरीर, ललाट में लाल मोटा और लम्बा तिलक, झक सफ़ेद साड़ी (बाबाओ के बाप के बाप की मां कहलाने वाली मुंबई की ' राधे मां ' की तरह दुल्हन का लिबास नहीं ) उसे और भी भयानक रूप देने अपने आप में पर्याप्त थी. दो सेवक उनकी सेवा में झूल रहे थे. लोग उसे पूरी श्रद्धा से ' घुग्घी मां ' ( उल्लू के सामान बड़ी-बड़ी आंखों के कारण )बुलाते हैं. लोगों का आना-जाना प्राय: लगा रहता है. बदहवास सी एक लड़की को उनके घर के लोग ले आये थे. पता नहीं उस लड़की को क्या तकलीफ थी कि बस बडबड करने लगी थी. सभी ने पहले ' घुग्घी मां ' के चरण छुए फिर देवी-देवताओं की तस्वीर सहित नीबू-नारियल के आगे मत्था टेके. सब के साथ मैने भी वहां अपना शीश नवाया. ऊपर से नीचे तक एक भरपूर नजर मारकर ' घुग्घी मां ' लड़की के परिजनों की ओर मुखातिब हो गई. पूछा " क्या तकलीफ है बच्चा..?" घर वालों ने बताया " बस रात से खाली बडबड किये जा रही है. कुछ खा-पी भी नहीं रही है. इसे तो बस आप ही ठीक कर सकती हैं घुग्घी मां." इतने में पता नहीं क्या इशारा हुआ तो एक सेवक बाल्टीभर पानी लाकर लड़की के शरीर में उड़ेल दिया. लड़की और जोर-जोर से बडबड करती कूदने-नाचने लगी. एक सेवक " शिव शम्भू ...शिव शम्भू " चिल्लाते आया और लड़की को कस के अपनी बाहों में जकड़ लिया. देवस्थल के धुएं से उसके शरीर की पूरी सिकाई हुई. ' घुग्घी मां ' ने अपने पास रखे भभूत उसे खाने दिया. करीब घंटेभर बाद लड़की एकदम सामान्य हो गई. उनके घर के लोग " घुग्घी मां की जय हो...घुग्घी मां की जय हो... " कहते भेंट-चढ़ावा बाद लौट गए.एक दिन वही ' घुग्घी मां ' मुझे एक बड़ी दवा दूकान में दिख गई. उसके साथ एक महिला और एक पुरुष सेवक भी नजर आये. मैने देखा, वो बुखार और दर्द निवारक गोलियों का जखीरा खरीद रही थी. मैने कहा- " घुग्घी मां की जय हो.." ' घुग्घी मां ' ने एक प्यारी सी मुस्कान बिखेर दी. उनके सेवकों ने भी कहा- " घुग्घी मां की जय हो.." मैने पूछा-" आप इन दवाओं का क्या करेंगी..? " घूरती नज़रों ने मुझसे कहा- " क्यों टाइम ख़राब कर रहा है बच्चा, जा तू भी अपना काम कर, हमें भी अपना काम करने दे. " मैने कहा- " घुग्घी मां " मै तो बस यूँ ही ...." बात ख़त्म हुई नहीं इसके पहले ही बिफरते स्वर मेरे कानों में गूंजने लगे- " इस देश में जब समोसा खिलाकर बच्चे पैदा करवाए जा सकते हैं...., लाल और हरी चटनी से लोगों पर कृपा बरस सकती है तो मेरे ' भभूत ' से क्या कुछ नहीं हो सकता.? " दुकानदार मेरी ओर " क्यों दुकानदारी ख़राब कर रहा है यार की मानसिकता में " देख रहा था.
वाह क्या बात है ... मान गए ... जय हो !
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - आज का दिन , 'बिस्मिल' और हम - ब्लॉग बुलेटिन
जी, शुकिया .
ReplyDeletebahut sundar bhai
ReplyDeletevimal ji dhanyawad.
Deletebitter truth...v wl never cope up n the poor will remain poor n uneducated because of so many babas n matas.... painfully accepted the truth.
ReplyDelete"bitter truth" Deepti Bindal ji, shukriya.
ReplyDeletejai ghughi ma
ReplyDeletejai ghughi ma
ReplyDeleteजैसी दुकान वैसे ग्राहक.....गाँव हो या शहर हर जगह आज भी ऐसी दुकानों की कोई कमी नहीं ..
ReplyDeleteबढ़िया सार्थक प्रस्तुति ..आभार