'शाहरुख' के 'दर्द' का एहसास



दोस्तों  की जिद्द पर मै  भी चार पहिया की एक सीट में समा गया. कार सीधे राजधानी की ओर फर्राटे भरने लगी. शिवनाथ पुल पार करें और पुलगांव के पहले ठाकुर ठेला में न रुकें, ऐसा संभव नहीं. चाय-नाश्ते के बाद आगे निकले तो कार सीधे रायपुर रिंगरोड होकर 'मेंगनेटो' में रुकी. हम कार समेत मॉल के आधारतल में पहुँच गए क्योकि पार्किंग व्यवस्था वहीँ थी. वहां से उत्तोलक (लिफ्ट) माध्यम से एक, दो करके तीसरे माले पर पहुंचे. एक गार्ड वहां हम सब की जेबें टटोलने लगा. बड़ा अटपटा लगा. हम सब एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे. गार्ड ने बड़े अदब से 'सिक्युरिटी रीज़न बौस' कह कर अपना काम कर लिया. हम वहां रनिंग लेडर (चलने वाली आटोमेटिक सीढ़ी) से चढ़ते-उतरते घूमते रहे. 'सुई' से 'सब्बल'  और 'नमक' से 'मुरब्बा' तक की दुकान वहां सजी थी. दोस्तों की इच्छा अब वहां आलीशान टाकीज में फिल्म देखने की हुई. साथ थे, इसलिए न चाहते हुए भी घुसना पड़ा.टिकट लेकर अन्दर जा ही रहे थे कि सामने एक सिक्युरिटी फ्रेम दिखा. उसमे से होकर गुज़र ही रहा था कि फिर एक बार मेरी जेब टटोली जाने लगी. इस बार मुझे स्वाभाविकतौर पर गुस्सा आया. मैंने गार्ड से कहा-" न तो ये न्यूयार्क का हवाई अड्डा है और न मै शाहरुख खान, फिर क्यों है ये ताम-झाम ?" गार्ड हाज़िर जवाब निकला. कहने लगा- " भईया, शाहरुख़, सलमान, या फिर आमिर खान ही क्यों न हो, चेहरा देखनेमात्र से किसी के निर्दोष होने का प्रमाण मिल जाता तो बात ही क्या है." हमारी इस बातचीत का आजू-बाजू वालो ने ठाहकेदार मज़ा ज़रूर लिया पर गार्ड का ज़वाब मुझे कई बातों पर सोचनें मज़बूर कर दिया. हम मॉल संस्कृति में चार से पांच घंटे तक समाये रहे. लौटते वक्त दोस्तों की इच्छा शेर-भालू देखने की हुई. कहते हैं  "शेर देखना भी है और डर भी लगता है तो जंगल नहीं जाना , किसी पिंजरे के शेर को देख लेना  चाहिए" सो हम सीधे भिलाई के मैत्री गार्डन पहुँच गए. शेर पिंज़रे में फलाहार कर रहा होगा और भालू की बदबू से मै पहले से ही वाकिफ था, इसलिए दोस्तों ने शेर-भालू देखा, तब तक मै पेड़ की  एक शाखा में आराम फरमाते रहा पर चैन नहीं मिल पाया. शाहरुख खान को तो अमरीका के एक हवाई अड्डे में महज़ कुछ घंटे रोका गया, मेरी तो अपने ही प्रदेश की राजधानी में खुलेआम जेबें टटोली गई. शाहरुख़ इतने महान कलाकार, उनके आगे मेरी क्या बिसात पर मुझे गुस्सा आ सकता है तो उनके दर्द का एहसास तो मै कर ही सकता हूँ. पेड़ की शाखा में लेटे-लेटे मै सोचने लगा था कि जब ताज पर तांडव हो सकता है, संसद पर हमला हो सकता  है, न्यायलय परिसर में विस्फोट हो सकता है, संसद के अन्दर नोटों की गड्डियां उछालने वालों का सम्मान होता हो और सलाखों के पीछे का आदमी जहाँ मंत्री बन जाता हो, ऐसा  देश अपने आप में महान है. जिस प्रदेश में कलेक्टर दिन-दहाड़े अगवा कर लिए जाते हों वहां इतनी सतर्कता और सजगता तो होनी ही चाहिए.दोस्तों की आवाज़ से मेरी एकाग्रता भंग हो गई, इसी के साथ मै पेड़ की शाखा से उतर गया.  हम लौट आये. जय हिंद.... जय भारत....जय छत्तीसगढ़....कह कर मै अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गया.  














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Comments

  1. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
    चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
    आपकी एक टिप्‍पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

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  2. हर बार की तरह आपने अच्छी चर्चा सजाई है. मेरी रचना को चर्चामंच में स्थान देने के लिए,..
    अतुल जी,...बहुत-बहुत आभार,...

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  3. ऐसे सुलगते समय में जब लोग किसी के दर्द से वास्ता रखना दूर उसके हक़ की रोटी भी डकार लेना चाहते हैं..आपने भले ही एक फिल्म अभिनेता के साथ गुज़री दिक्कतों को अपनी परेशानियों के साथ जोड़ा है पर जनाब दर्द तो दर्द होता है चाहे वो हम पर गुज़रे या किसी और पर.....बेहतरीन

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  4. नज़रें इनायत के लिए शुक्रिया सोएब अली जी.

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