" घर में एक सामान ढूंढते- ढूंढते बरसों पुराना एक गुल्लक हाथ लग गया. बिना देरी के उसे जब नारियल की तरह फोड़ा तो मेरे गुल्लक के 'हीरे' पांच... दस...बीस... पच्चीस, पचास और एक-दो के सिक्कों की शक्ल में मिले! चिल्लहर की भरमार हो गई! आज पूरा बाजार घूम गया, जहां भी चिल्ल्हर के रूप में भुगतान का प्रयास किया, स्वीकार करना तो छोड़ दुकानदार मुझे इस तरह घूरते रहे जैसे मैंने कोई उनकी बेटियां भगा लेने जैसा अपराध कर दिया हो! चिल्लहर के बदले बड़ी मोहब्बत से चाकलेट और चवन्नी छाप पीपरमेंट थमा देने वाले बाजार में खूब चांदी कूट रहे हैं! चिल्ल्हर के बदले कुछ भी गिफिन [ निकृष्ट ] किस्म की चीजों को थम देना वर्तमान व्यवहारिक बजारनीति बन गई है जबकि विधिकतौर पर पांच, दस, बीस जैसे सिक्केयुक्त चिल्लहर पच्चीस रुपये तक स्वीकार करने से कोई मना नहीं कर सकता! यही क़ानूनी बाध्यता है! मित्रों सरकार ने अब तक सिक्कों में सिर्फ चवन्नी यानी पच्चीस पैसे को ही घोषिततौर पर बंद किया है, इस लिहाज से शेष सिक्के प्रचलन में हैं पर व्यवहार में ये सिक्के कहाँ गायब हो गए हैं, ये सरकार और प्रशासन के समक्ष बड़ा सवाल है...???...
मजेदार....
ReplyDeleteshukriya atul ji.
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