पत्रकारिता का रंग पीला क्यूँ ....?
" ऊँची कद-काठी ..., इकहरे बदन..., कंधे पर थैला..., माथे पर लाल तिलक...,हाथ में मोटा बंधा मौली धागा..., कमीज़ के खीसे में दो से तीन पेन..., आँखों में पावर वाला ऐनक ..., हल्के पके सिर के बाल के हुलिए वाले एक शख्स से आज मेरी मुलाकात हो गई. बाहें, बूढी ज़रूर हो गई हैं पर आज भी इनकी दौड़-भाग छत्तीसगढ़ के आठ जिलों में चलते रहती है. 70 के वय में जावानों की सी स्फूर्ति दिखाने वाला शख्स कोई और नहीं बल्कि अपनी पूरी जिंदगी बतौर मीडिया कर्मी सेवा में झोंक देने वाला भूषण लाल वर्मा है. इस साल वे इसी सेवा में अपनी उम्र की अर्धशतकीय पारी खेल रहे हैं. मूलत: दुर्ग जिले के नंदौरी निवासी श्री वर्मा अठारह साल की उम्र से प्रिंट मीडिया में प्रचार-प्रसार का काम कर रहे है. रायपुर के सप्रे स्कूल में दसवीं तक शिक्षा प्राप्त श्री वर्मा बताते हैं कि दो बार शिक्षा विभाग ने नौकरी का कागज भी आया पर घर की परिस्थियाँ बाहर जाने से रोकती रही सो चाहकर भी गुरजी नहीं बन पाया, फिर पिता स्व. रामलाल वर्मा भी उन्हें अपनी नज़रों से ओझल नहीं होने देना चाहते थे.मां का स्नेह इन्हें नहीं मिल पाया. पैदाइश के दूसरे दिन वो