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Showing posts from September, 2014

" जब गीली जेब से निकली रुदनी ....!!! "

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पानी गिरा …, बाढ़ आई …, चार यार जुटे...., मस्ती के मूड में उछलते-कूदते नहाने के साथ ही बाढ़ का मज़ा ले रहे थे! बाढ़ में बह कर आई  मछलियां, नहाने वालों के नंगे शरीर से टकराकर शरमाती हुई भागने लगी! सभी ने नहाते-नहाते मछलियां पकड़ने की युक्ति लगाई! एक पारदर्शी कपड़े के सहारे अब ये सभी मछलियां पकड़ने में व्यस्त हो गए! देखते ही देखते इनके पास कोतरी...., बिजलू …,टेंगना …,सारंगी …, सहित एक-दो छोटी मोंगरी जैसी मछलियां संग्रहित हो गई! इस बीच कुछ और उत्साहित लोगों की भीड़ वहां बढ़ गई! पकड़ी गईं मछलियों को अब बांटने की बारी आई! यद्यपि सब के सब प्रसन्न मुद्रा में दिखाई दे रहे थे पर मछलियां पकड़ते-पकड़ते इनमे से एक की गतिविधियां शेष लोगों को संदेहास्पद लगाने लगी थी! सवालात भरी नज़रों से उसे ऐसा देख रहे थे जैसे सभी का मौन आग्रह शंका समाधान चाहता हो,  तत्काल तलाशी ली गई तो चड्डे की गीली जेब से रुदनी नामक मछलियां निकलने के साथ ही मछलियां छुपा रखने की पोल भी खुल गई, हा.... हा.... हा...., फिर क्या था, मछलियां गवांने  साथ ही उसे बंटवारे से भी बेदखल होना पड़ गया! 

हाय रे मेरे गुल्लक के 'हीरे' …??? "

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" घर में एक सामान ढूंढते- ढूंढते बरसों पुराना एक गुल्लक हाथ लग गया. बिना देरी के उसे जब नारियल की तरह फोड़ा तो  मेरे गुल्लक के 'हीरे' पांच... दस...बीस... पच्चीस, पचास और एक-दो के सिक्कों की शक्ल में मिले! चिल्लहर की भरमार हो गई! आज पूरा बाजार घूम गया, जहां भी चिल्ल्हर के रूप में भुगतान का प्रयास किया, स्वीकार करना तो छोड़ दुकानदार मुझे इस तरह घूरते रहे जैसे मैंने कोई उनकी बेटियां भगा लेने जैसा अपराध कर दिया हो! चिल्लहर के बदले बड़ी मोहब्बत से चाकलेट और चवन्नी छाप पीपरमेंट थमा देने वाले बाजार में खूब चांदी कूट रहे हैं! चिल्ल्हर के बदले कुछ भी गिफिन [ निकृष्ट ] किस्म की चीजों को थम देना वर्तमान व्यवहारिक बजारनीति बन गई है जबकि विधिकतौर पर पांच, दस, बीस जैसे सिक्केयुक्त चिल्लहर पच्चीस रुपये तक स्वीकार करने से कोई मना नहीं कर सकता! यही क़ानूनी बाध्यता है! मित्रों सरकार ने अब तक सिक्कों में सिर्फ चवन्नी यानी पच्चीस पैसे को ही घोषिततौर पर बंद किया है, इस लिहाज से शेष सिक्के प्रचलन में हैं पर व्यवहार में ये सिक्के कहाँ गायब हो गए हैं, ये सरकार और प्रशासन के समक्ष बड़ा सवाल है...???

" हिचकोले तो खाने पड़ेंगे प्रभु...!!! "

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महाप्रभु श्री गणेश जी से मूषकराज कहने लगा- " सावन तो गया, भादो में बरसाती घटा का साया दिख रहा है ! बारिश का दौर जारी है ! छत्तीसगढ वैसे भी जंगलों से परिपूर्ण है, एक बार घटाटोप बादल इसके  उपर छा जाये तो इसकी हरियाली देखते ही बनती है ! हरी-भरी धरती का सुख प्राप्त हो रहा है, इस अदभुत झांकी से अच्छी झांकी और क्या होगी प्रभु ! बहुत मजा आ रहा है! आपकी कृपा से रोज सेव, केला, मौसंबी, संतरे के साथ ही भुजिया, नमकीन का स्वाद लेने मिल रहा है! " प्रभुश्री मुस्कुराते हुए बोले- " ये सब कहने-बोलने की जरुरत ही क्या है ? " मूषकराज जी कहने लगे- " प्रभु, जब आप आराम की मुद्रा में थे तब मै उस ओर निकल गया जो विसर्जन मार्ग है ! मैने देखा, 1 किमी में 500 से कहीं अधिक छोटे-बडे गड्ढे हैं ! उन गड्ढों में पानी भी भरा है जिससे खतरा और बढ़ गया है ! क्या बताऊं प्रभु, मुझे खुद डंका-चम्पा करते लौटना पड़ा ! " मूषकराज की बातें सुन प्रभु ने फिर एक मधुर मुस्कान बिखेरी ! मूषकराज कहने लगा- " आप तो बस मोदक सेवन कर मंद-मंद मुस्कुराते रहिए, पर इतना जान लीजिये कि हिचकोले तो आपको भी खान