" वो अनसुलझा सवाल ! "

तीर्थयात्रा से अभी-अभी लौटकर आये एक शख्स से आज अचानक मुलाकात हो गई। चाय की चुस्कियों के साथ उन्होंने चर्चा शुरु की। उनकी बातें सुनकर लगने लगा कि धर्म-कर्म के प्रति शायद उसे वितृष्णा सी हो गई है ! वो कहता जा रहा था, मै सुनता जा रहा था। कहने लगा- " इन दिनों हिन्दू और हिन्दुत्व की चिन्ता खासकर बाबाओं को 'सरकार' से भी ज्यादा होने लगी है। तमाम बाबाओं को प्रणाम करने के साथ ही वह बताते गया कि इसी चिन्ता में बाबाओं की जमात जुटी थी। सिहासन वाले बाबा, 'भगवान' और 'अवतारी पुरुष' का अंतर समझा रहे थे, साथ ही भक्तों द्वारा की जाने वाली पूजा विशेष पर भी वे आपत्ति जता रहे थे। इंतने में 'हवाई जहाज' वाले बाबा भड़क गये, कहने लगे- " हिन्दूधर्म को बर्बाद न करो ! " 'बटलोही' वाले बाबा भी कहां चुप रहने वाले थे, वो कहने लगे- " चरमपंथ को बढावा देना बंद करो। " किसिम-किसिम के बाबा वहां जुटे थे। 'गोली' ( गांजा गली, मानव मंदिर के पीछे ) वाले बाबा अपनी बडी-बडी आखें दिखाते हुए कहने लगे-" किसी के निजी अहंकार के लिए अन्य गेरुआधारियों का इस्त...