' भ्रष्टाचार ' का पौधा

दफ्तर पहुचने में आज उसे देर हो गई थी. उसके हाथ में एक पौधा (जिसकी डाली तोड़ने पर दूध निकालता है ) था. दरअसल साहब की मांग पर ही वह पौधा लाने चला गया था. जैसे ही वह पहुंचा, साहब भड़क गए. ये आने का समय है..., मै कब से आ कर बैठा हूँ और तुम अभी आ रहे हो..? हाथ में पौधा देख उनका चिल्लाना बंद हुआ. पौधे का मिटटी वाला हिस्सा गीली चिंदी में लपेट देने के निर्देश के साथ ही तत्काल उसका परिपालन भी हो गया. अब,सब अपने-अपने काम में लग गए. दफ्तर का काम-काज ठीक से शुरू भी नहीं हो पाया था कि एक फरियादी आ धमका. सीधे साहब के पास जाकर उसी बाबू पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने लगा जिसने थोड़ी देर पहले साहब के लिए पौधा लेकर आया था. फरियादी चिल्लाने लगा " आप लोगों को काम के बदले सरकार तनख्वाह देती है, फिर कोई काम के कैसे पैसे....? ये तो खुला भ्रष्टाचार है." साहब फरियादी की बातों को गौर से सुनने के बाद गुस्साते हुए बाबू को तलब किया. बाबू सफाई देने लगा- " साहब इसमे मेरी कोई गलती नहीं है. बचपने में मेरे दादा जी, मुझसे बीड़ी जलवा कर मंगवाया करते थे. एक बार जलती बीडी दादा जी तक पहुँचने के पहले ही बुझने...