मै क्यों बताऊँ ?

शहर के मध्य एक चौक है. लोग इसे भदौरिया चौक के नाम से जानते है. इसी चौक के बाजू में एक चाय का होटल है. चाय की तलब लगी. मै भी उस होटल तक पहुँच गया. वैसे यहाँ असामान्य व्यक्ति ज्यादा दिखते हैं. मैने होटल वाले से चाय मांगी. चाय मुझे मिल पाती, इसके पहले उस व्यक्ति पर मेरी नज़र पड़ी जो हाथ में अखबार लिए, उसमे छपे समाचारों को जोर-जोर से पढ़कर लोगों को सुना रहा था. मैने उससे पूछा-" कौन सा अखबार है?" उसने चेहरा घुमाकर आँखें दूसरी ओर कर ली.( जैसे उसके अपने काम से शायद खलल पड़ी हो) उनकी ओर से कोई जवाब तो नहीं आया पर वो जारी रहा. उसमे छपी एक खबर को वह चटखारे ले-लेकर लोगों को बता रहा था. मैने भी सुनी. खबर थी-"...और जीत गई जिंदगी." खबर का सार यह था कि एक युवक ने अपने घर के कमरे में लगे पंखे के सहारे फंसी लगाकर आत्महत्या का प्रयास किया. जैसे ही वह उसमे झूलने की कोशिश की, रस्सी टूट गई और मौत ने उसे धोखा दे दिया. इस तरह से जिंदगी जीत गई और मौत को शिकस्त मिली." इस बीच मेरी चाय भी आ गई और मै चुस्कियां लेने लगा. वो अब मेरी ओर मुखातिब होते हुए प्रतिप्रश्न किया-" हाँ भई...