मासूम की अस्मत का लुटेरा ........
जिसे वह फूफा कह कर स्नेह सींचती थी.....,खाने-पीने से लेकर चाय-नाश्ते का खयाल रखती थी उसी की नज़रें वहशी हो जाएगी...यह सपनें में भी उसने नहीं सोंचा रहा होगा. बच्ची तो मां-बाप के पास थी. मां-बाप जैसा कहते थे वैसा वह करती थी. उसके मां-बाप उसे उनके साथ सुलाते...वह सो जाती थी. दरअसल उस परिवार ने ५७ वर्षीय बंशी बैगा को अपने घर में पनाह दी थी. पांच साल पहले झाड़-फूंक के लिए उसे उस परिवार ने अपने घर बुलाया था, तब से उसका लगातार आना-जाना लगा रहा. बैगा लगभग अब उसी के घर में रहने लग गया था. कभी-कभी वह करमतरा से अपने घर बसंतपुर आ जाता था. बैगा उस परिवार में इतना अधिक घुल-मिल गया था कि जब सब लोग अपने काम पर चले जाते थे तो वह घर में अकेला रहता था. मासूम बच्ची जब स्कूल से आती थी तो उस समय घर में उपस्थित छोटे बच्चों को बैगा कुछ न कुछ बहाने से बहार भेज देता था. अबोध बालिका का शरीर बांध रहा हूँ ( झाड़-फूंक ) कह कर उसकी अस्मत लूटते रहा. घटना के बारे में किसी को कुछ बताने से मना करता था. डर की वजह से उसने किसी से कुछ नहीं कहा. जब दो माह से बालिका का मासिक धर्म रुक गया तब डाक...