" तोर गइया हरही हे दाऊ....!!! "
" ऐ हे हे हे हे, कजरी कहां जही रे... ओ हो हो हो हो, ऐ टिकला कहां झपाही रे... ऐ बलही तो आज नंगतेहेच भाव खावत हे...!!! " हुरररररर्रट....ठहराले....ठाहराले.... ऐ धंवरी, पिंवरी अउ लाली ल तो आज सोंटरंजन [ डंडे का प्रहार] परही तइसे लगत हे। आज तो पदोई [परेशान करना ] डरीन ऐ मन ह । खुरमी [तुर्रादार बांस की चिल्फियों से बनी, मयूर पंख लगी बड़ी टोपी] पहिरे बरदिहा अपन लउठी ल लहरावत जात रिहिसे अउ संगे-संग अइसनेच चिल्लावत जात रिहिसे। खइरखाडहान ले बरदी के उसलत देरी नई रिहिसे के भांठा मेरन बस्ती के बड़े दाउ ह सपड़ गे। बरदिहा के जै जोहार के जवाब दे बर छोड़ उल्टा दाऊ भड़क गे। कहिथे- "कस रे बरदिहा... बने चराए कर, कल कजरी ह कोठा में ओइले नई दिखिस... का बात हे रे....???" सकपकाए असन हो के बरदिहा ह कहिथे-"तोर गइया ह हरही हो गे हे दाऊ... लांहगर बांधे बर परही, आजे बांध दुहुं....!!!" दाऊ ह कुछु अउ कहितिस तेकर पहिली फेर बरदिहा ह बोले लगिस- "दाऊ जी, ऐ पइंत 9-9 काठा करवाहू भई, महंगई बाढ़ गे हे, अब नई पुराए...!!!" दाऊ फेर भड़क गे... कहिथे- "चुप रे लपरहा, 7-7 क