Posts

Showing posts from June, 2013

" चिकनी चुपडी चाची !

Image
शाम जा रही थी और बहार आ रही थी। हम दोस्तों के साथ " फुर्सत के पल " ( मेरे सहनाम के होटल का नाम है ) से चाय पी कर लौट रहे थे। अचानक मेरी नजर एक पडे हुए सिक्के पर पडी। मानवीय स्भावानुकुल जब उसे उठाया तो स िक्का नहीं " टिल्लस " निकला। मैं शर्मिन्दा और मेरे साथ वालों की हंसी का ठिकाना नहीं था। मै दोस्तों के उपहास का दंश झेल ही रहा था कि ऐसा लगा जैसे मुझसे कोई कुछ कहना चाह रहा है। नजरें दौडाई तो मेरे साथ वाले आगे निकल चुके थे और मैं अनजानी आवाज सुन वहीं ठिठक गया। दरअसल मुझसे यह कहा जा रहा था - " क्या देख रहा है रे ? नगरों में लोग जो मेरा रुप देखते हैं, वह अत्यंत आकर्षक और साफ सुथरा है। मेरे शरीर पर कहीं मिट्टी दिखाई नहीं देगी। चिकनी-चुपडी चाची के समान मै भी सुन्दर और आकर्षक लगती हूं। मुझ पर चलने में आनंद आता है। कारें, बसें और अन्य दूसरे वाहन मुझ पर तेज गति से दौडते रहते हैं। मै भले ही निर्जीव समझी जाती हूं, पर मुझमें चेतना है। मै तो गांव को गांव से, नगर से जोडने का काम करती हूं।मेरा काम एक देश को दूसरे देश से मिलाना है। परस्पर जुडाव से मै भाईचारे का भाव पैदा क

"उई मां...उई मां ...ये क्या हो गया...!!!?

Image
" बडे अच्छे लगते हैं.... ये धरती ....ये नदिया....और त् उ उ उ उ उ उ म !!!"(मेरे मोबाईल का रिंगटोन) जैसे ही बजने लगा, कुछ देर इस कर्णप्रिय गाने  को सुनने के बाद- " हां, बोल इकबाल ? (यद्यपि मैने डिस्प्ले देख लिया था तथापि बिना हाय...हैलो की औपचारिकता के सीधी बात की) प्रतिउत्तर मिला- " गंगा ( होटल गंगा )में आइए, चाय पीते हैं। " मैं जब पहुंचा तो टेबिल पर चाय आ चुकी थी। हम चुस्कियां लेने लगे। अचानक " उई मां....उई मां " की आवाज के साथ एक युवती कुर्सी से लगभग उछल पडी थी। उसके चेहरे का हाव-भाव बता रहा था कि उसके शरीर में भयवश सिहरन सी दौड गई थी। उसे सामान्य होने में तकरीबन पंद्रह मिनट लग गए। उसकी इस बदहवासी का कारण जब सामने आया तो रेस्तरां में ठहाके गूंजने लगे। आखिर ऐसा क्या हुआ होगा ? समझ सकते हैं । यह जरुर बताएं कि आप मे से ऐसे कौन-कौन हैं जिन्हें " काकरोच " से डर लगता है...!!!!????

" उडान " पर बंदिश..!!!

Image
" रुखमणि " आज बेहद खुश थी। जब वह पीहर छोड पिया के संग आई थी तो खूब लजाती थी पर अब बात दूसरी है। आज उसके चेहरे में आत्मविश्वास की झलक स्पष्ट दिख रही थी। दरअसल उसका पति " प्रेमलाल " क्षर-फुक्कन किस्म का है। जेब में रुपए हैं तो वह किसी शहंशाह से कम नहीं। आंखें तरेरती हुई आज " रुखमणि " ने पगार के सारे पैसे अपने कब्जे में कर लिए थे। कमर तक लंबे बालों को झटकती हुई कहने लगी- " घर मुझे चलाना पडता है। सब्ज ी-भाजी से लेकर अन्य जरुरतें आखिर कैसे पूरी होगी ? फिर तो सरकार ने भी अब महिलाओं को घर का मुखिया बना दिया है। देखे नहीं क्या, राशन कार्ड मे बतौर मुखिया मेरा नाम और मेरी फोटो लग गई है।" अमर, विष्णु, रामगोपाल, सरजू और मनबोधी भी गुलछर्रे उडाने में कोई कमी नहीं करते। रुखमणि की टेक्निक आबा चम्पा, कमला, गुलाबो, प्रेमबती और अनसुईया भी अपनानें लगी हैं। इन पतियों पर तो मानो शामत ही आ गई ! " चोंगी-माखुर " के चंद खर्चे थमा कर इन पत्नियों ने अपने पतियों के " छकल-बकल " की प्रवृति पर बंदिश लगाने की ठान ली है। लोगबाग के तानों की चिंता छोड हर शाम

घोघा और तिनके का स्पर्श ...!!!

Image
मैने घोंघे को इतने करीब से पहले कभी और नहीं देखा था। आज शिवनाथ तट में रु-ब-रु हुआ। वह अपना घर अपने साथ लेकर चल रहा था। शाम के समय वह तट पर जल से निकल कर थल की ओर आने की कोशिश कर रहा था। इसके सिर का भाग काफी संकुचनशील लग रहा था। इसे देख मुझे मस्ती सूझी और मैने एक तिनका लिया। सिर के मांसल भाग में तिनके का स्पर्श होते ही उसने अपने आप को अपनी कवचनुमा कोठरी में सिकोड लिया। कुछ देर बाद अंदर का जीव फिर झांकने लगा था। वह रेंग-रेंग कर फिर निकलता और तिनके के स्पर्श से फिर अपने आप को सिकोडते जा रहा था। मुझे मजा आ रहा था और इसी मजे के फेर में मेरे हाथ के तिनके का कमाल जारी था। इसके सिर मे मुंह और दो आंखें थी। बार-बार तिनके के स्पर्श से घोंघा शायद परेशान हो गया था अतः अब वह झांकते ही स्वयं को सुरक्षित करते हुए अपने आप को कवच में सिकोडने लगा था। अब की बार बहुत देर तक वह कवच से झांका भी नहीं और मेरे हाथ का तिनका स्पर्श को फडफडाता रहा! मैने भी सोंचा " शायद, घोंघा ग्रीष्म निद्रा लीन हो गया हो ! " मैने भी वहां से रवानगी डाली।